CNBC TV18 Exclusive में जानिए
1. नया नियम क्या है
ऑप्शंस में जितनी बड़ी पोजिशन आप लेना चाहते हैं, उतनी ही मजबूत आपकी कैश मार्केट पोजिशन होनी चाहिए.सरल भाषा में कहें तो, बिना कैश में हिस्सेदारी लिए अब ऑप्शंस में हाई लेवरेज लेकर सट्टा नहीं चलेगा.यह बदलाव ऑप्शंस में “खाली सट्टेबाजी” (naked speculation) पर रोक लगाने के मकसद से लाया जा सकता है.
2. क्या होगा इसके पीछे का फॉर्मूला
एक ऐसा फॉर्मूला लाया जा सकता है, जिसमें ऑप्शन में आपकी एक्सपोजर लिमिट सीधे आपकी कैश मार्केट होल्डिंग या ट्रेड से जुड़ी होगी.कैश में ज़्यादा होल्डिंग = ऑप्शन में ज़्यादा एक्सपोजर की छूट.
3. SEBI के इस प्रस्ताव से चार बड़े मकसद पूरे हो सकते हैं-कैश मार्केट में लिक्विडिटी बढ़ेगी – क्योंकि ट्रेडर्स को कैश से पोजिशन लेनी ही होगी.
ऑप्शंस में अनावश्यक लिक्विडिटी घटेगी – सट्टा घटेगा.
खुदरा निवेशकों की सुरक्षा होगी – उधारी से बिना समझदारी वाले ट्रेड कम होंगे.
जेन स्ट्रीट जैसी विदेशी संस्थाओं की ‘तेज़ कमाई’ पर लगाम लगेगी – जो तेज़ी से ऑप्शन में आ-जा कर मुनाफा कमाती हैं.
4. ऑप्शंस मार्केट में क्यों ज़रूरत पड़ी कंट्रोल की
भारत में अब ऑप्शंस ट्रेडिंग का हिस्सा 80% से ज़्यादा हो गया है, लेकिन इसमें रियल डिलीवरी या निवेश बहुत कम होता है.ज़्यादातर रिटेल ट्रेडर छोटे पैसों से बड़े-बड़े सौदे करते हैं, और भारी नुकसान उठाते हैं.इससे कैश मार्केट की लिक्विडिटी भी प्रभावित होती है, क्योंकि सभी का ध्यान ऑप्शंस पर केंद्रित हो गया है.
5. कैश मार्केट को मज़बूत करने के लिए और क्या प्लान है
सेबी कैश मार्केट में शॉर्ट-सेलिंग को आसान बनाने पर भी विचार कर रही है.SLBM यानी स्टॉक लेंडिंग-बॉरोइंग सिस्टम को और बेहतर बनाया जाएगा, ताकि डिलीवेरेबल वॉल्यूम और लिक्विडिटी बढ़ सके.
6. इसका असर किन पर सबसे ज़्यादा पड़ेगा
रिटेल ट्रेडर्स जो ऑप्शंस में बिना कैश पोजिशन के हाई रिस्क लेते हैं.HNI और Algo फंड्स, जो लेवरेज का जमकर इस्तेमाल करते हैं.विदेशी संस्थाएं जैसे Jane Street जो हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग से ऑप्शंस में तगड़ी कमाई करती हैं.ब्रोकर प्लेटफॉर्म्स, जिन्हें ऑप्शंस ट्रेडिंग से मोटा कमीशन मिलता है.
7. बाजार के लिए बड़ा बदलाव – क्या सावधानी जरूरी है
यह नियम लागू हुआ तो ऑप्शंस मार्केट की लिक्विडिटी कम हो सकती है, जिससे प्रीमियम बढ़ सकते हैं.ट्रेडर्स को अब कैश पोजिशन भी बनानी होगी, यानी पूंजी की ज़रूरत बढ़ेगी.लॉन्ग टर्म के लिए यह फैसला स्वस्थ और स्थिर बाजार के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन शॉर्ट टर्म में इसका असर ट्रेडिंग वॉल्यूम पर दिखेगा.
कुल मिलाकर-SEBI के इस प्रस्ताव का मकसद ऑप्शंस मार्केट में “सट्टा कम, स्थिरता ज़्यादा” लाना है. अगर कैश और डेरिवेटिव्स को जोड़ने वाला यह नियम लागू होता है, तो यह भारत के इक्विटी बाजार की दिशा बदल सकता है—जहां स्पेक्युलेशन कम और असली निवेश बढ़ेगा.
Source: CNBC