Geojit Investments के वी.के. विजयकुमार ने इसको लेकर कहा कि भारत का शेयर बाजार अभी महंगा लग रहा है, खासकर जब दूसरे देशों से तुलना की जाए। इसी वजह से FIIs मुनाफा कमा कर निकल रहे हैं। हालांकि वे अब भी IPO और QIP जैसे रास्तों से निवेश कर रहे हैं। सबसे ज्यादा बिकवाली बैंक और फाइनेंस सेक्टर में हुई, क्योंकि इसमें FIIs का सबसे ज्यादा पैसा लगा होता है। आईटी कंपनियों के शेयर भी उन्होंने बेचे, क्योंकि वहां ग्रोथ को लेकर चिंता है। लेकिन टेलीकॉम और कैपिटल गुड्स कंपनियों में वे अब भी पैसे लगा रहे हैं।
निकट भविष्य में कुछ कम हो सकती है FIIs की बिकवाली
वी.के. विजयकुमार ने आगे कहा कि निकट भविष्य में FIIs की बिकवाली कुछ कम हो सकती है, क्योंकि डॉलर अब कमजोर हो रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व से सितंबर में ब्याज दर घटाने की उम्मीद की जा रही है। फेड प्रमुख जेरोम पॉवेल ने अपने जैक्सन होल भाषण में भी ऐसे संकेत दिए हैं, जिससे यह माना जा रहा है कि सितंबर में दरों में कटौती हो सकती है। जब ऐसा होता है, तो आमतौर पर डॉलर कमजोर होता है और उभरते बाजारों की ओर निवेशकों का रुझान बढ़ता है।
नए और उभरते बिजनेस में विदेशी निवेशकों का भरोषा
वाटरफील्ड एडवाइजर्स के सीनियर डायरेक्टर और इक्विटी हेड विपुल भोर का कहना है कि पूरे 2025 में FIIs ने ज्यादातर समय शेयर बाजार में बिकवाली ही की है और अगस्त में भी यही सिलसिला जारी है। उन्होंने बताया कि हालांकि कुछ दिनों में थोड़ी-बहुत खरीदारी भी हुई है, लेकिन कुल मिलाकर विदेशी निवेशक अभी भी बाजार से पैसे निकाल रहे हैं। विपुल भोर ने यह भी साफ किया कि विदेशी निवेशक बाजार से पूरी तरह बाहर नहीं हुए हैं। वे अभी भी सोच-समझकर और चुनिंदा सेक्टर्स में निवेश कर रहे हैं, खासकर प्राइमरी मार्केट में।
उन्होंने बताया कि जब हम सेकेंडरी (यानी रोज की ट्रेडिंग) और प्राइमरी मार्केट (जैसे IPO या QIP) के आंकड़े देखते हैं, तो साफ पता चलता है कि FIIs अभी भी नई कंपनियों और नए सेक्टरों में पैसा लगा रहे हैं। इसका मतलब है कि FIIs उन सेक्टरों से दूरी बना रहे हैं जहां ग्रोथ की रफ्तार धीमी है, लेकिन नए और उभरते बिजनेस में उनका भरोसा बना हुआ है।
डिस्क्लेमर: जो सुझाव या राय एक्सपर्ट देते हैं, वो उनकी अपनी सोच है। ये इकोनॉमिक टाइम्स हिंदी की राय नहीं होती।
Source: Economic Times