ऐसी कंपनियों के भविष्य का फैसला इस महीने के मध्य में हो सकता है, जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 90 फीसदी या इससे अधिक है। सेबी के बोर्ड की बैठक 18 जून को होने वाली है। इसमें इन सरकारी कंपनियों को डीलिस्टिंग के मौजूदा नियमों से छूट देने के प्रस्ताव को मंजूरी मिल सकती है। इस मामले से जुड़े लोगों ने बताया कि सेबी के बोर्ड की मीटिंग में 90 फीसदी या इससे ज्यादा सरकार की हिस्सेदारी वाली कंपनियों को डीलिस्टिंग के नियमों से छूट मिल सकती है। सेबी ने इस बारे में 6 मई को एक डिस्कशन पेपर इश्यू किया था। इसमें कहा गया है कि 90 फीसदी या इससे ज्यादा सरकार की हिस्सेदारी वाले पीएसयू मिनिमम शेयरहोल्डिंग नियमों का पालन किए बगैर खुद के डीलिस्ट करा सकते हैं।
लिस्टेड कंपनी में प्रमोटर की 75 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं
इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए सेबी को भेजे ईमेल का जवाब नहीं मिला। SEBI ने पिछले महीने इस बारे में एक डिस्कशन पेपर इश्यू किया था। इस पर 26 तक लोगों की राय मांगी गई थी। लोगों के फीडबैक पर विचार करने के बाद सेबी इस बारे में अंतिम फैसला लेगा। सरकारी कंपनियां (PSU) मिनिमम शेयरहोल्डिंग के नियमों के पालन के मामले में काफी पीछे रही हैं। सेबी के नियम के मुताबिक, लिस्टिंग के तीन साल पूरे होने पर कंपनी में प्रमोटर हिस्सेदारी 75 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसका मतलब है कि अगर लिस्टिंग के वक्त किसी कंपनी में प्रमोटर की हिस्सेदारी 75 फीसदी से ज्यादा है तो तीन साल के अंदर उसे घटाकर 75 फीसदी तक लाना होगा।
20 PSU में सरकार की हिस्सेदारी तय लिमिट से ज्यादा
सेबी कई बार PSU कंपनियों को सरकार की हिस्सेदारी घटाकर 75 फीसदी तक लाने के लिए अतिरिक्त समय दे चुका है। लेकिन, आज भी ऐसे 20 से ज्यादा PSU हैं, जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 75 फीसदी से ज्यादा है। इनमें से कुछ कंपनियों को लिस्ट हुए 10 साल से ज्यादा समय बीत चुका है। यह इस बात का संकेत है कि सरकार की हिस्सेदारी घटाकर 75 फीसदी तक लाने में PSU की ज्यादा दिलचस्पी नहीं रही है।
सिर्फ 90 फीसदी हिस्सेदारी वाले PSU को नियम से छूट
सेबी के डिस्कशन पेपर में उन सरकारी कंपनियों को डीलिस्टिंग के नियमों से छूट देने का प्रस्ताव है, जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 90 फीसदी या इससे ज्यादा है। प्राइम डेटाबेस के डेटा के मुताबिक, अभी ऐसी 10 से ज्यादा कंपनियां हैं, जिनमें सरकार की हिस्सेदारी तय लिमिट से ज्यादा है। इनमें KIOCL, IDBI Bank, Indian Overseas Bank, HMT, Punjab & Sind Bank, State Trading Corporation, UCO Bank, ITI और Fertilisers & Chemicals Travancore शामिल हैं।
यह भी पढ़ें: Andrew Yule: एंड्रयू यूल ने Veedol का ओएफएस तकनीकी खराबी की वजह से वापस नहीं लिया था, जानिए क्या थी असली वजह
शेयरों में कम लिक्विडिटी वाली कंपनियां होंगी डीलिस्ट
मार्केट पार्टिसिपेंट्स का कहना है कि डीलिस्टिंग के नियमों में छूट मिल जाने पर उन सरकारी कंपनियों को डीलिस्ट कराया जा सकता है, जिनके शेयरों में लिक्विडिटी कम है। एक्सपर्ट्स का भी कहना है कि जिन PSU के शेयरों में अच्छी लिक्विडिटी है, उन्हें सरकार डीलिस्ट नहीं कराएगी। सेबी के नियमों के मुताबिक, किसी कंपनी को डीलिस्ट कराने के लिए उसके दो-तिहाई शेयरहोल्डर्स की मंजूरी जरूरी है।
Source: MoneyControl