वोडाफोन और आइडिया का 2018 में विलय हुआ था। उसके बाद यह कंपनी वोडाफोन आइडिया बन गई। विलय के बाद से यह कंपनी लगातार मुश्किलों में घिरी रही है। ऐसा लगा था कि विलय के बाद यह (वोडाफोन आइडिया) इंडिया की सबसे बड़ी टेलीकॉम बन जाएगी। लेकिन, यह सरकारी टेलीकॉम कंपनी एमटीएनएल के बाद दूसरा बड़ा बोझ बन गई। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद वोडाफोन के वजूद को लेकर बड़ा खतरा पैदा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) के बकाया से राहत की कंपनी की मांग खारिज कर दी। देश की सबसे बड़ी अदालत ने कंपनी की अपील पर भी सवाल उठाया।
कर्ज जुटाने की कोशिशें नाकाम रही हैं
ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल ने हाल में Vodafone Idea पर अपनी रिपोर्ट में इस स्टॉक को बेचने की सलाह दी है। इस रिपोर्ट में वोडाफोन आइडिया के संकट की गंभीरता के बारे में भी बताया गया है। AGR बकाया के मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलने का मतलब है कि कंपनी को मार्च 2026 से बकाया लौटाना शुरू करना होगा। उधर, कर्ज जुटाने की कंपनी की कोशिशें कामयाब रही हैं। इसका मतलब है कि कंपनी को हर साला अतिरिक्त 20,000 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी। यह पैसा नहीं मिला तो कंपनी FY25-27 के दौरान 50,000-55,000 करोड़ रुपये का पूंजीगत खर्च का अपना प्लान पूरा नहीं कर पाएगी।
सब्सक्राइबर्स की संख्या में लगातार आ रही कमी
Vodafone Idea ने FY25 में 9,600 करोड़ रुपये का कैपिटल एक्सपेंडिचर किया। यह 2018 में विलय के बाद से सबसे ज्यादा पूंजी निवेश है। इसके बावजूद यह वोडाफोन आइडिया की तकदीर बदलने में नाकाम रहा है। कंपनी के सब्सक्राइबर्स की संख्या लगातार घट रही है। हालांकि, इसकी रफ्तार कम हुई है। इस साल मार्च में सब्सक्राइबर्स की संख्या में 16 लाख घट गई। डेटा के नए सब्सक्राइबर्स बनाने की रफ्तार भी कमजोर है। हालांकि, कंपनी ने 4G/5G नेटवर्क रोलआउट पर फोकस बढ़ाया है।
सरकार की मदद भी नाकाफी साबित हो रही
राहत के उपायों और सरकार की मदद के बावजूद Vodafone Idea की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। कंपनी का घटा बढ़कर 7,200 करोड़ रुपये हो गया, जबकि इस पर कर्ज का बोझ बढ़कर 1.80 लाख करोड़ रुपये हो गया है। सरकार के 36,950 करोड़ रुपये का कर्ज इक्विटी में बदलने के बावजूद कंपनी पर कर्ज का बोझ बढ़ा है। कंपनी को अब भी डेफर्ड स्पेक्ट्रम पेमेंट्स और एजीआर बकाया के लिए सरकार को 1.95 लाख करोड़ रुपये का पेमेंट करना है।
सरकार हिस्सेदारी 49 फीसदी से ज्यादा नहीं करना चाहती
वोडाफोन आइडिया लगातार पेमेंट में देर करती रही है। इस बीच यह राहत की मांग करती रही है। इसके लिए यह सुप्रीम कोर्ट तक गई थी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद अब यह गंभीर सकंट में फंस गई है। कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार की हिस्सेदारी का भी हवाला दिया। दरअसल कंपनी (Vodafone Idea) में सरकार की हिस्सेदारी 50 फीसदी के करीब पहुंच गई है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट यह कह दिया कि सरकार कंपनी की मदद करने के लिए आजाद है, लेकिन कोर्ट पर इस तरह का कोई दबाव नहीं है।
सरकार और राहत देने को तैयार नहीं
कर्ज को इक्विटी में कनवर्ट करने के बाद अब सरकार की वोडाफोन आइडिया में हिस्सेदारी 49 फीसदी तक पहुंच गई है। लेकिन, सरकार अपनी हिस्सेदारी इससे ज्यादा नहीं बढ़ाना चाहती। ऐसा होते ही वह कंपनी की सबसे बड़ी शेयरहोल्डर बन जाएगी। इस बीच, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सरकार का रुख साफ किया है। उन्होंने कहा है कि टेलीकॉम कंपनियों को AGR के मामले में राहत देने का कोई प्लान नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि सरकार मौजूदा 49 फीसदी के बाद कर्ज को इक्विटी में नहीं बदलना चाहती। इसका मतलब है कि वोडाफोन आइडिया को अब अपने नफा-नुकसान और बैलेंसशीट की जिम्मेदारी खुद उठानी होगी।
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कंपनी के लिए बहुत कम वक्त बचा है
किसी डूबती कंपनी पर पैसा नहीं बहाने का सरकार का फैसला सही लगता है। ऐसे में वोडाफोन आइडिया के पास सीमित विकल्प रह गए हैं। उसे किसी बड़े इनवेस्टर की तलाश करनी होगी। लेकिन, इंडिया के टेलीकॉम मार्केट की तस्वीर को देखते हुए ऐसा इनवेस्टर मिलना मुश्किल है, क्योंकि रिलायंस जियो और भारती एयरटेल किसी तीसरी कंपनी को मार्केट में पैर पसारने का शायद ही मौका देंगी। ऐसे में वोडाफोन के लिए वक्त बहुत कम बच गया है।
Source: MoneyControl