भारत को अब नजरअंदाज नहीं कर सकते FII, 8 कारण जो बना रहे हैं भारत को निवेश का हॉट डेस्टिनेशन

मई 2025 भारत के लिए विदेशी संस्थागत निवेश (FII) के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। वित्त वर्ष 2024-25 में जबरदस्त बिकवाली के बाद अब विदेशी निवेशकों का भरोसा भारत में दोबारा लौटता दिख रहा है। वेल्थ मैनेजमेंट फर्म आयनिक वेल्थ के अनुसार, भले ही वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बनी हुई हो, लेकिन भारत की संरचनात्मक मजबूती और घरेलू निवेशकों की ताकत ने भारतीय शेयर बाजार को स्थिर बनाए रखा है। आइए जानते हैं वे 8 प्रमुख कारण जिनके चलते अब भारत को FII नजरअंदाज नहीं कर सकते:

1) भारत में FII की हिस्सेदारी अब भी कम है

आयनिक वेल्थ के मुताबिक, वर्तमान में विदेशी निवेशकों की भारत में हिस्सेदारी मात्र 18.8% है, जबकि अन्य उभरते बाजारों (चीन को छोड़कर) में यह औसतन 30% है। यह अंतर दर्शाता है कि भारत में FII के लिए लॉन्ग टर्म ग्रोथ की जबरदस्त संभावनाएं हैं।

2) अब सिर्फ निफ्टी-50 तक सीमित नहीं रहे FII

20 साल पहले FII का फोकस केवल टॉप 20% निफ्टी 500 कंपनियों पर होता था। लेकिन अब उन्होंने अपनी पकड़ 80% निफ्टी 500 कंपनियों तक फैला ली है। निफ्टी-50 में उनकी हिस्सेदारी अब तक के सबसे निचले स्तर पर है। इससे साफ है कि FII भारत के मिडकैप और स्मॉलकैप सेक्टर पर अब ज्यादा भरोसा कर रहे हैं।

3) घरेलू निवेश बन रहा है बाजार का सेफ्टी नेट

भारतीय बाजार अब केवल विदेशी पूंजी पर निर्भर नहीं है। देश के घरेलू निवेशक 6.4 लाख करोड़ रुपये की इक्विटी फंड राशि के साथ किसी भी विदेशी बिकवाली को असरहीन बना सकते हैं। यह FY25 में FII द्वारा निकाली गई रकम से चार गुना अधिक है।

4) ग्रोथ सेक्टर्स में बढ़ रहा है विदेशी दांव

FII अब केमिकल्स, EMS, टेलीकॉम, इंफ्रास्ट्रक्चर और फाइनेंशियल्स जैसे सेक्टरों में निवेश बढ़ा रहे हैं। इसके पीछे चाइना+1 स्ट्रैटेजी, भारत का कैपेक्स बूम और डिजिटल कंजम्पशन जैसे मेगा ट्रेंड्स प्रमुख वजह हैं।

5) डीआईआई बन चुके हैं भारतीय बाजार की रीढ़

पिछले दशक में डोमेस्टिक इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स (डीआईआई) ने 15.25 लाख करोड़ रुपये की नेट खरीद की है। मार्च 2025 में Nifty 500 कंपनियों में डीआईआई की हिस्सेदारी एफआईआई से अधिक हो गई। इससे बाजार अब विदेशी मूड पर कम और घरेलू आधार पर ज्यादा टिका है।

6) करेंसी मूवमेंट से होती है अस्थायी बिकवाली

रुपये में कमजोरी आने पर एफआईआई अस्थायी रूप से बाहर निकलते हैं। लेकिन आयनिक वेल्थ के अनुसार, जैसे ही मौद्रिक स्थिरता लौटती है, एफआईआई दोबारा फंडामेंटल्स के आधार पर लौटते हैं। भारत की कमाई वृद्धि, उचित वैल्यूएशन और मैक्रो स्थिरता उन्हें आकर्षित करती है।

7) भारत में रिटर्न, ग्रोथ और डेप्थ का अनोखा संगम

भारत की खपत में 6% सीएजीआर, कैपेक्स में 7% सीएजीआर और पिछले दशक में 34% कंपनियों ने 20% से अधिक RoE दिया है। यह फॉर्मूला भारत को विदेशी निवेशकों के लिए लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट हॉटस्पॉट बनाता है।

8) मिडकैप और स्मॉलकैप का बढ़ता आकर्षण

2015 से अब तक एफआईआई ने लार्जकैप हिस्सेदारी 80% से घटाकर 77% कर दी है और मिड-स्मॉल कैप (SMIDs) में रुचि दिखाई है। ये कंपनियां अधिक तेज ग्रोथ देती हैं और विस्तार के चक्र में निवेशकों के लिए बड़ा रिटर्न बना सकती हैं।

(अस्वीकरण: विशेषज्ञों द्वारा दी गई सिफारिशें, सुझाव, विचार और राय उनके अपने हैं। ये इकोनॉमिक टाइम्स हिन्दी के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।)

Source: Economic Times